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कविता संग्रह >> हरापन बाकी है

हरापन बाकी है

देवेन्द्र सफल

प्रकाशक : दीक्षा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16019
आईएसबीएन :000000000

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श्री सफल चाहे 'आपबीती' कहें या 'जगबीती' लिखें, लोक-संपृक्ति उनकी विशिष्ट पहचान बनी रहती है

अनुक्रमणिका


जीवन में हरेपन की तलाश करते गीत - नचिकेता
'भोजपत्र' पर लिखी इबारत - अवध बिहारी श्रीवास्तव
अपनी बात - देवेन्द्र सफल
1. हीरकनी
2. दर्पण से खुलकर बतियाते
3. जाने कितने दर्पण बदले .
4. आज वो इतना बड़ा है
5. सपने बुने रंगीन
6. कहाँ तुम्हारा ध्यान
7. घुट रहा है दम
8. जोश फिर भर दें
9. पंछियों के स्वर सुनूँ
10. तट किससे दुख-दर्द कहे
11. कृपालु हुए लम्बोदर
12. दुख न होते कम
13. ऐसे आसार बने हैं
14. चितकबरी पहचान
15. भ्रम के साये में
16. उड़ते हुए नजर आते
17. अरुणिम प्रहर की प्रार्थना
18. हमने नव-छन्द रचे
19. मँहगाई का बैताल
20. जाने किसकी लगी नज़र
21. प्रश्न करे दर्पण
22.. पत्थर फिर भी लोग उछालें
23. बीज ऊसर को मिले हैं
24. रक्षक ही हो गया लुटेरा
25. राजा सोया हुआ
26. सोच बदल दी है
27. बिखर गई मुक्ता-माला
28. वही तथागत है
29, भ्रम के टूट रहे ताले
30. निर्दयी मौसम हुआ
31. सब हैं तनाव में
32. ताजा कर लें फिर यादों को
33. आधी कटी उँगलियाँ
34. सफर जारी है
35. उड़ रही अफवाह
36. मौसम ने ली है अँगड़ाई
37. मिली गीक्षा की घड़ी 
38. बूंद-बूंद रस में डूबी
39. मन से कमजोर नहीं
40. काल-गति भूले
41. बिम्ब बदलते हैं
42, स्वप्न फिर भी पल रहा
43, शक्ति के आधार हैं
44. हम विजयी नायक
45. आई परी
46. मनवा सुध-बुध खोवे
47. मन के बन्धन
48. आकाश हुए हो
49. गीत रह गये अनगाये
50, हरा-हरापन होना अच्छा
51. भोजपत्र पर लिखी इबारत
52. कोयलिया सुर में बोले
33. चुप है हवायें
54. जब से ये दर्पण देखा है
55. करता वक्त सवाल
36. पड़ने लगी दरार
57. फिर चर्चा हर ओर हो रही
58. कैसा अनुबंध किया
59. दूर से मिलिये
60. वे अतीत के पृष्ठ सुनहरे

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    अनुक्रम

  1. अपनी बात
  2. अनुक्रम

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